जब शोभा ने ध्यान से तारा के तलवों को देखा, तो वह चौंक गईं। तारा के पैरों में काँच के छोटे-छोटे टुकड़े चुभे हुए थे। उन्होंने चिल्लाकर रोहित से कहा,
"रोहित, तुरंत डॉक्टर को बुलाओ!"
अब तक बाकी सबने भी तारा के पैरों में फंसे काँच के टुकड़े देख लिए थे। सबने शिवांश की तरफ देखा, जो नीचे गिरी तारा को देख रहा था, फिर उन्होंने तारा की ओर देखा।
तारा का चेहरा घूंघट से ढका हुआ था, इसलिए कोई उसका चेहरा नहीं देख सकता था। लेकिन अगर कोई उसकी दर्द से भरी आँखों में झांकता, तो शायद उसकी हालत पर तरस खाए बिना नहीं रह पाता।
शोभा ने रोहित से डॉक्टर को बुलाने के लिए कहा और फिर नाराज़गी से शिवांश की ओर देखने लगीं। वह बहुत गुस्से में थीं — एक लड़की के साथ ऐसा व्यवहार कैसे कर सकता है? वह जानती थीं कि शिवांश माफिया है, लेकिन उसने कभी उनके सामने किसी लड़की से ऐसा व्यवहार नहीं किया था।
"शिवांश, तुमने ये क्या कर डाला?" — ऋषिधर जी ने गुस्से में पूछा।
शिवांश ने पहले अपने दादा की ओर देखा, फिर शोभा की ओर, जो उसे नाराज़ होकर घूर रही थीं।
फिर उसने अखबार को मेज़ पर रखा, खड़ा हुआ और कहा:
"माँ, दादाजी... आप सब मुझे ऐसे क्यों देख रहे हैं? अगर मेरी पत्नी का नाम तारा है, तो शादी की रस्में भी तारा की तरह अनोखी होंगी... और उसकी आने वाली ज़िंदगी भी!"
उसी समय वहाँ एक 26 साल की लड़की आई। वह सफेद शर्ट, काली पैंट और काले हील्स में थी। उसके हाथ में एक डॉक्टर का कोट था — साफ़ था कि वह एक डॉक्टर थी।
यह थीं डॉक्टर शानाया दत्त।
उसके कंधों तक बाल थे जिनमें नीला हाइलाइट था, लंबा चेहरा, तीखी आँखें, पतले होंठ और 5 फीट 5 इंच की ऊँचाई — सब कुछ परफेक्ट। अगर वह डॉक्टर न होती, तो किसी हीरोइन से कम नहीं लगती।
शानाया को देख रोहित चौंक गया। वह तो अभी उसे कॉल करने ही वाला था। मन ही मन बोला:
"ये डॉक्टर है या भूत? सोचते ही प्रकट हो गई!"
"शोभा आंटी, सब ठीक है? सर ने तुरंत बुलाया था।" कहते हुए शानाया हवेली के अंदर आई।
उसे देख सुरेखा बोली:
"कसम हीरे की शानाया, तू तो कमाल की डॉक्टर है। यहाँ मरीज़ का खून निकला भी नहीं और तू प्रकट हो गई। लगता है दर्द की आवाज़ दूर से सुन लेती है!"
"सुरेखा, चुप भी हो जाओ!" — अजय ने डाँटा और फिर शानाया से कहा,
"शानाया, इसकी बातों पर ध्यान मत दो। तुम उसे देखो।"
शानाया ने पहले तारा को और फिर शिवांश को देखा। वह चौंकी, क्योंकि शिवांश ने कभी अपने परिवार से बाहर किसी को देखने के लिए इतनी जल्दी डॉक्टर नहीं बुलाया था।
लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और तारा के पास गई। क्योंकि वह जानती थी — चाहे वह कितनी भी अच्छी डॉक्टर हो, अगर ये माफिया राजा गुस्से में आ गया तो उसे सर्टिफिकेट के बिना ही पोस्टमॉर्टम करवा देगा।
जैसे ही शानाया तारा का घूंघट हटाने लगी, शिवांश ने गुस्से से उसे रोका और कहा:
"मैंने तुम्हें उसका चेहरा देखने को नहीं बुलाया। उसके पैर देखो। और हाँ, आगे से तुम्हें इसे कई बार देखना होगा, तो काम जल्दी और ढंग से करना सीख लो।"
ये कहकर वह तारा के पास आया।
शिवांश को पास आते देख शानाया थोड़ा पीछे हट गई।
शिवांश ने तारा की ठुड्डी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर किया।
घूंघट के कारण केवल तारा के काँपते होंठ दिख रहे थे — डर और ठंड से। शिवांश कुछ पल उसके होंठों को देखता रहा, फिर घृणा भरी आँखों से उसकी तरफ देखा और कहा:
"शादी करने का बहुत शौक था ना तुम्हें? तो बधाई हो, मिसेज़ तारा शिवांश रंधावा। तुम्हारा सपना पूरा हो गया। अब स्वागत है तुम्हारा — नरक में। शादी तो हो गई, पर अब हर दिन तुम पछताओगी। मैं तुम्हें कुछ नहीं होने दूँगा — ताकि मैं तुम्हें हर दर्द दे सकूँ। और हाँ, इलाज भी कराऊँगा — ताकि तुम हर तकलीफ़ को महसूस कर सको!"
इतना कहकर उसने तारा का चेहरा झटका दिया — जिससे वह सीधे सोफ़े पर गिर पड़ी।
घर के सभी लोग यह देखकर बेचैन हो गए। शानाया समझ नहीं पा रही थी कि यहाँ क्या चल रहा है।
वह पहले ही सदमे में थी कि शिवांश ने शादी कर ली और ये लड़की — तारा — उसकी पत्नी है।
शिवांश ये कहकर अपने कमरे की ओर चला गया।
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लेखक समीक्षा:
इस अध्याय को लिखते समय मेरे मन में कई भावनाएँ उमड़ रही थीं — दर्द, गुस्सा, रहस्य और उम्मीद। तारा और शिवांश की कहानी एक आम प्रेम कहानी नहीं है, बल्कि यह उन जटिल रिश्तों की तस्वीर है जो जबरदस्ती से शुरू होते हैं और दर्द के रास्तों से होकर गुज़रते हैं। शिवांश का गुस्सा, तारा का डर, और शोभा की चिंता — हर किरदार की अपनी एक गहराई है, जो पाठकों को जोड़कर रखती है।
मुझे यह अध्याय लिखते हुए यह दिखाना था कि कैसे एक लड़की, जो पूरी तरह अजनबी है, एक ऐसे घर में प्रवेश करती है जहाँ कोई उसका स्वागत नहीं करता, और उसका पति उसे नफ़रत से देखता है। फिर भी, तारा की आँखों में उम्मीद की नमी है, जो इस कहानी को आगे बढ़ाएगी।
कहानी का यह भाग एक भावनात्मक शुरुआत है — यह केवल एक विवाह नहीं, बल्कि एक संघर्ष की शुरुआत है। मुझे यकीन है कि पाठकों को यह अध्याय झकझोर कर रख देगा और वे तारा के साथ न्याय होते देखने की उम्मीद में अगला अध्याय जरूर पढ़ना चाहेंगे।
इस कहानी में सिर्फ रिश्तों का संघर्ष नहीं है, बल्कि आत्म-सम्मान, सहनशीलता और बदलाव की लड़ाई भी है। तारा एक मासूम लड़की है जिसे हालात ने मजबूर कर दिया, लेकिन उसमें एक आग भी है जो समय के साथ उभरेगी। वहीं शिवांश एक ऐसा पात्र है जो बाहर से कठोर है, लेकिन अंदर कुछ टूटा हुआ है — जिसे पाठक धीरे-धीरे जानेंगे।
मैंने जानबूझकर कुछ सवाल अधूरे छोड़े हैं — क्या तारा इस रिश्ते को निभा पाएगी? क्या शिवांश की नफ़रत कभी बदल पाएगी? और क्या यह मजबूरी कभी सच्चे रिश्ते में बदलेगी?
आने वाले अध्यायों में बहुत कुछ सामने आएगा — प्यार, नफ़रत, बदला, और redemption (पश्चाताप)। उम्मीद है कि यह अध्याय आपके दिल को छू पाया होगा।
आपके कमेंट्स
और सुझावों का मुझे बेसब्री से इंतज़ार रहेगा।
– आपका लेखक
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