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सभी लोग शॉभा के कार से उतरने का इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन शॉभा वैसे ही बैठी रही। यह देखकर रिया ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा,
"मम्मी, हम घर आ गए हैं।"
रिया की आवाज़ से शॉभा का ध्यान टूटा। वह अपनी सोच से बाहर आई और कार से उतरकर सुरेखा से बोली,
"सुरेखा, तुम तारा को यहीं रोक कर रखना, तब तक मैं अंदर जाकर गृहप्रवेश की सारी तैयारी कर देती हूँ।"
"तारा कौन?", सुरेखा ने पूछा और सबकी सवाल भरी नज़रें शॉभा की तरफ़ घूम गईं। तब शॉभा ने कहा,
"उस लड़की का नाम तारा है जिससे शिवांश की शादी हुई है।"
"अरे, तो मैडम जी का नाम तारा है। अब देखते हैं कि इन में क्या खास बात है। वैसे दीदी, मैं तो उसे तभी रोक पाऊंगी जब वो कार में हो।" सुरेखा ने मुंह बनाते हुए कहा।
शॉभा ने हैरानी से पूछा, "क्या मतलब? वो तो तुम्हारे साथ ही थी न कार में?"
"नहीं दीदी, वो हमारे साथ नहीं आई। शिवांश ने अपने बॉडीगार्ड को कहा था कि उसे किसी दूसरी कार से लाया जाए। हीरे की कसम दीदी, या तो शिवांश उसे बहुत पसंद करने लगा है या फिर उसके लिए कुछ बहुत बुरा सोच रहा है।"
सुरेखा की बात सुनकर शॉभा और ज्यादा परेशान हो गईं।
रात गहराती जा रही थी और बारिश भी नहीं थमी थी, लेकिन हर बीतते पल के साथ शॉभा की चिंता बढ़ती जा रही थी। वह हॉल में बैठी-बैठी तारा और शिवांश के लौटने का इंतज़ार कर रही थी।
शिवांश भी मंदिर से जाने के बाद अभी तक वापस नहीं आया था।
शॉभा ने उसे कई बार कॉल किया लेकिन उसने एक बार भी फोन नहीं उठाया। तारा को लाने वाले बॉडीगार्ड का नंबर भी "not reachable" बता रहा था।
रोहित और रिया शॉभा की बेचैनी देख रहे थे। सुरेखा ने कहा,
"अरे दीदी, इतनी चिंता क्यों कर रही हो? शिवांश का देर से आना कोई पहली बार नहीं है। कितनी बार वो रात भर... "
अचानक ड्राइवर ने कार का गेट खोला और शिवांश रंधावा, हमेशा की तरह अपने ठंडे रवैये के साथ बाहर निकला।
वह बिना किसी की तरफ़ देखे सीधे सीढ़ियों की ओर बढ़ने लगा तभी शॉभा ने उसे रोकते हुए कहा,
"शिवांश बेटा, तुम अभी तक कहाँ थे?"
माँ की आवाज़ सुनकर शिवांश के कदम थम गए। उसने पलटकर देखा। हमेशा की तरह उसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
ठंडी आवाज़ में बोला,
"ऑफिस का काम था।"
फिर शॉभा ने सीधे तारा के बारे में पूछा,
"और तारा कहाँ है?"
शिवांश पहले थोड़ा चौंका, लेकिन जब समझ गया कि माँ किसकी बात कर रही है, तो उसकी आँखें और ज़्यादा सख़्त हो गईं और आवाज़ और गहरी।
उसने कहा,
"अगर वो सुरक्षित है तो आ जाएगी।"
यह कहकर वो अपने कमरे की ओर बढ़ गया।
उसके शब्द सुनकर सब चौंक गए।
अब रात के 1 बजे थे। मंदिर से लौटे तीन घंटे हो चुके थे, लेकिन तारा अब तक नहीं आई थी।
शेरगिल मेंशन, मुंबई के पॉश एरिया में था, और मंदिर शहर के दूसरे छोर पर। वहां से आना इतना आसान नहीं था, और उस रास्ते पर ज्यादा गाड़ियाँ भी नहीं चलती थीं।
शॉभा की चिंता हर पल बढ़ती जा रही थी। बार-बार उसे शिवांश की बातें याद आ रही थीं। उसने तय किया कि वह शिवांश के कमरे में जाकर उससे तारा के बारे में पूछेगी।
शॉभा अभी उठ ही रही थी कि तभी उसे दरवाज़े पर एक परछाई दिखी।
तारा, लाल दुल्हन के जोड़े में, बारिश में पूरी तरह भीगी हुई, दरवाज़े पर खड़ी थी और बुरी तरह हांफ रही थी।
"तारा!" शॉभा उसका नाम लेकर उसकी ओर दौड़ी।
शॉभा की आवाज़ सुनकर सब अपने-अपने कमरों से बाहर आ गए।
सभी ने देखा कि उनके घर की नई बहू पूरी तरह भीगी हुई थी। उसके पैरों में छाले थे और उसके लहंगे से पानी टपक रहा था, जिससे साफ़ लग रहा था कि वह पैदल ही आई है।
रिया ने धीरे से रोहित से पूछा,
"रोहित भैया, क्या ये लड़की सच में मंदिर से पैदल आई है?"
रोहित भी हैरान होकर तारा को देख रहा था। फिर उसकी नज़रें दूसरी मंज़िल पर गईं।
शिवांश अपनी बालकनी में खड़ा नीचे देख रहा था। उसके दोनों हाथ रेलिंग पर थे और उसकी नज़रें तारा पर जमी थीं।
शॉभा ने चिंता में कहा,
"तारा, तुम ठीक हो?"
तारा ने धीरे से सिर हिलाया। उसके पास बोलने की ताकत भी नहीं बची थी। वह पूरी तरह भीगकर पैदल आई थी, इसलिए उसके शरीर में बिल्कुल ऊर्जा नहीं बची थी।
शिवांश वहीं खड़ा अपनी माँ का चेहरा देख रहा था। वो जानता था कि उसकी माँ सबके लिए कितनी प्यारी है, लेकिन वो खुद वैसा नहीं है।
शॉभा तारा का हाथ पकड़कर उसे अंदर लाने ही वाली थी कि तभी शिवांश की कड़वी आवाज़ पूरे हॉल में गूंजी,
"माँ, क्या आप अपनी बहू को ऐसे ही अंदर ले आएंगी? उसका गृहप्रवेश नहीं होगा?"
यह सुनकर तारा, जो अभी तक दर्द और थकान से निढाल खड़ी थी, सीधी हो गई।
उसने अपनी भीगी पलकों के पीछे से उस इंसान को देखा जिससे कुछ घंटे पहले ही उसकी शादी हुई थी — वही इंसान जिसने उसे आधी रात को अकेले, बारिश में छोड़ दिया था।
वह उसकी मांसल काया और खूबसूरत चेहरे को देख रही थी, जो काले कपड़ों में और भी आकर्षक लग रहा था।
शॉभा गुस्से में बोली,
"शिवांश, तुमने उसके साथ ऐसा क्यों किया? क्या तुम उसके इस हाल के ज़िम्मेदार हो?"
लेकिन शिवांश ने कुछ नहीं कहा, बस पास खड़ी नौकरानी से बोला,
"जाओ, गृहप्रवेश की तैयारी करो।"
यह कहकर वह एक राजा की तरह सोफे पर बैठ गया और अख़बार पढ़ने लगा।
कोई भी उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। खुद शॉभा भी नहीं।
क्योंकि वह जानती थी कि अगर आज कुछ और कहा तो शिवांश का तीसरा नेत्र खुल जाएगा — और उसका मतलब होगा सिर्फ़ तबाही।
नौकरानी ने अगले 5 मिनट में गृहप्रवेश की सारी तैयारियाँ कर दीं।
तारा अभी भी दरवाज़े पर खड़ी थी।
उसके सामने एक चावल से भरा कलश, लाल रंग से भरी थाली और सफेद कपड़ा बिछा था।
तैयारी के बाद नौकरानी ने शॉभा को आरती की थाली दी। शॉभा ने एक बार शिवांश की तरफ देखा जो अब भी अख़बार पढ़ रहा था, फिर उसने लंबी सांस ली और तारा की आरती शुरू कर दी।
हालांकि वर का साथ होना आवश्यक होता है, लेकिन शॉभा जानती थी कि शिवांश कभी तारा के साथ खड़ा नहीं होगा।
शुक्र था कि रिश्ता अभी जुड़ा था, नहीं तो शायद इसी वक्त सब टूट जाता।
आरती के बाद शॉभा ने कहा,
"तारा, अपने दाएं पैर से इस कलश को गिराओ और फिर लाल थाली में पाँव रखकर सफेद कपड़े पर चलो।"
तारा ने सिर हिलाया और बड़ी मुश्किल से अपना दाहिना पैर उठाया। उसका पैर सूज चुका था और बहुत दर्द कर रहा था। लेकिन फिर भी उसने हिम्मत जुटाई और कलश को छुआ।
जैसे ही उसने कलश छुआ, उसके मुँह से हल्की सी सिसकी निकल गई।
"क्या हुआ?" शॉभा ने पूछा।
"कुछ नहीं," तारा ने जल्दी से सिर हिलाया, आँखें बंद की और फिर पूरी ताकत से कलश को गिराया।
फिर उसने लाल रंग में पाँव रखा — लेकिन जैसे ही उसने पाँव रखा, दर्द के कारण चीख उठी।
वह गिरने ही वाली थी कि शॉभा और रिया ने उसे थाम लिया।
सब कुछ देखने के बाद भी, शिवांश ने बस इतना कहा,
"अपनी रस्म पूरी करो और अंदर आओ।"
तारा ने उसकी आँखों में देखा, जहाँ सिर्फ़ नफ़रत थी।
उसकी आत्मा टूट गई।
उसने होंठ काटते हुए अपने कदम आगे बढ़ाए और सफेद कपड़े पर चलने लगी। हर कदम जैसे मौत का दर्द दे रहा था।
जैसे ही उसने आखिरी कदम रखा, वह ज़मीन पर गिर गई।
शॉभा उसे उठाने दौड़ी, लेकिन तभी उसकी नज़र तारा के पैरों पर पड़ी। जब उसने तारा के तलवों को गौर से देखा तो उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं।
उसने लगभग चिल्लाते हुए रोहित से कहा,
"रोहित, डॉक्टर को अभी बुलाओ!"
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शॉभा ने ऐसा क्या देखा?
शॉभा तारा के लिए इतनी चिंतित क्यों हो रही है?
क्या तारा शिवांश की सज़ा सह पाएगी?
जाने के लिए जुड़े रहिए मेरी कहानी से।
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