जैसे ही सुरेखा ने अपनी कड़वी बातें कही, वो वहाँ से जाने लगी। तारा ने भी गहरी साँस ली, अपने दर्द और आँसुओं को संभाला, हिम्मत जुटाई और लड़खड़ाते क़दमों से सुरेखा के पीछे चल पड़ी।
सुरेखा जैसे ही मंदिर की सीढ़ियाँ उतर रही थी, तभी शिवांश रंधावा के एक बॉडीगार्ड ने आकर सिर झुकाकर उनके सामने खड़ा हो गया।
सुरेखा ने पूछा, "तू यहाँ क्या कर रहा है?"
बॉडीगार्ड ने सिर झुकाकर कहा, "छोटी मालिकिन, शिवांश सर ने कहा है कि वो लड़की आप सबके साथ नहीं, बल्कि किसी और गाड़ी से आएगी।"
सुनकर सुरेखा पहले तो चौंक गई, फिर होंठ भींचते हुए बोली, "हीरे की कसम, मुझे क्या करना है? चाहे दूसरी गाड़ी में आए या नरक में जाए, मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
इतना कहकर वह सीधा बाकी परिवार के पास आ गई। जब ऋषिधर ने सुरेखा को अकेले आते देखा, उन्होंने पूछा, "छोटी बहू, अकेली क्यों आ रही हो? दुल्हन कहाँ है?"
"पापा जी, मैं उसे लेने ही जा रही थी लेकिन शिवांश ने उसके लिए अलग गाड़ी भेज दी है और कहा है कि वह हम सबके साथ नहीं आएगी। अब मैं शिवांश के खिलाफ तो नहीं जा सकती ना, पापा जी। हीरे की कसम, आप जानते हैं मैं उसकी बात कैसे टाल सकती हूँ।" इतना कहकर वह गाड़ी में बैठ गई।
लेकिन ऋषिधर वहीँ खड़े सोचने लगे।
कुछ समय बाद शोभा भी उनके पास आईं। उनके चेहरे पर चिंता थी और वो गहरी सोच में डूबी हुई लग रही थीं।
वो इतनी खोई हुई थीं कि उन्हें यह भी ध्यान नहीं रहा कि तारा उनके साथ नहीं थी।
उधर, तारा अकेली उस गाड़ी की पिछली सीट पर बैठी थी।
उसके साथ केवल एक बॉडीगार्ड था, जो बार-बार रियर मिरर से तारा को अजीब नजरों से देख रहा था।
तारा घूंघट के सिरे से बार-बार ड्राइवर की आँखों में झांक रही थी और डर के मारे उसका शरीर काँप रहा था।
वो बहुत घबराई हुई थी — और हो भी क्यों ना, एक अनजान आदमी के साथ अकेली कार में बैठी लड़की, जिसे यह भी नहीं पता कि उसे कहाँ ले जाया जा रहा है — उसका डरना तो स्वाभाविक था।
तभी अचानक गाड़ी रुक गई — जिससे तारा चौंक गई।
उसने घबराई हुई निगाहों से ड्राइवर की तरफ देखा। ड्राइवर ने बिना किसी भाव के मुड़कर कहा,
"मैडम, शिवांश सर का आदेश है कि आप शेरगिल मेंशन पैदल जाएँगी।"
तारा यह सुनकर चौंक गई। उसने खिड़की से बाहर देखा — बारिश अभी भी तेज़ी से हो रही थी। हिचकिचाते हुए उसने कहा,
"पर... मुझे शेरगिल मेंशन का रास्ता नहीं पता..."
असल में तारा ये कहना चाहती थी कि इतनी तेज़ बारिश में वो अकेली कैसे चलेगी और ऊपर से उसकी मजबूरी उसे इतना लंबा रास्ता तय नहीं करने देगी — पर वह ये सब कह नहीं सकी।
तभी बॉडीगार्ड ने एक कागज़ तारा के हाथ में थमाया और बोला,
"ये शेरगिल मेंशन का रास्ता है, आप इसे देखकर पहुँच जाइए।"
इतना कहकर वह गाड़ी से उतरा और तारा का दरवाज़ा खोलकर वहीं खड़ा हो गया।
कुछ देर तक तारा कभी उस बॉडीगार्ड को देखती, कभी उस नक्शे को — जो बेहद उलझा हुआ था। ऐसा लग रहा था मानो जानबूझकर सबसे लंबा रास्ता चुना गया हो।
तारा को अपनी हालत का अंदाज़ा था और अपने ऊपर दया भी आ रही थी, पर वह कुछ नहीं कर सकी — और चुपचाप गाड़ी से उतर गई।
जैसे ही वह गाड़ी से बाहर निकली, बॉडीगार्ड वापस कार में बैठा और वहाँ से चला गया।
ठंडी बारिश की बूंदों के साथ-साथ तारा को अपने आँसुओं की गर्मी भी महसूस हो रही थी। उसका घूंघट पानी से भीग चुका था और हाथों में चूड़ियाँ खनक रही थीं।
तेज़ हवा की वजह से उसका भीगा हुआ दुपट्टा उड़ रहा था, जिससे उसकी गोरी और पतली कमर नज़र आ रही थी। वह उस भीगे हाल में बेबस सी खड़ी थी।
उसने ऊपर आसमान की तरफ देखा। बारिश की बूंदें उसके चेहरे पर और चुनरी पर गिरती हुई उसे चुभन दे रही थीं।
उसने गले से आवाज़ निकालकर कहा,
"मम्मी... मुझे रास्ता नहीं पता। एक नक्शा है, लेकिन अगर मैं रास्ता भटक गई... तो आप बता देना, ठीक है?"
फिर उसने गहरी सांस ली, खुद को हिम्मत दी और नक्शे में दिखाए गए रास्ते की ओर बढ़ गई।
वो चलते वक्त एक पैर से लंगड़ा रही थी — जो ये दिखा रहा था कि वह ठीक से चल भी नहीं पा रही।
उसने अपने दाहिने पैर को देखा और मुस्कुराते हुए कहा,
"मेरे प्यारे राइट पैर, मुझे पता है आज तुम पर बहुत ज़्यादा ज़ोर पड़ने वाला है, लेकिन प्लीज़ सह लेना। मैं बाद में अच्छी तरह मालिश कर दूंगी, ठीक है?"
वो इसी तरह खुद से — यानी अपने पैरों से — बातें करती चल रही थी। बारिश इतनी तेज़ थी कि उसे रास्ता ठीक से दिख भी नहीं रहा था।
अच्छा ये हुआ कि जो नक्शा बॉडीगार्ड ने तारा को दिया था, वो प्लास्टिक में अच्छी तरह से पैक था, जिससे वह भीगा नहीं और तारा को देखने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी।
कुछ समय बाद, गाड़ियों का एक काफिला एक बड़े सफेद मेंशन के सामने रुका।
मेंशन के मुख्य द्वार पर सुंदर अक्षरों में लिखा था —
‘शेरगिल मेंशन’
शेरगिल मेंशन देखने में इतना सुंदर था कि ताजमहल भी फीका लग जाए। सफेद पत्थरों से बना वह महल चाँद की तरह चमक रहा था।
ऊपर लगी लाइटें तारों की तरह टिमटिमा रही थीं।
महल के सामने एक बड़ा फव्वारा था, जिसके पास एक बगीचा था जिसमें तरह-तरह के फूल खिले हुए थे।
पूरे मेंशन की सुरक्षा काले यूनिफॉर्म पहने बॉडीगार्ड्स कर रहे थे। सुरक्षा ऐसी थी जैसे यह कोई घर नहीं, सेना की छावनी हो।
सभी गाड़ियाँ उस फव्वारे को पार करके महल के सामने रुकीं। पहले वाहन से बॉडीगार्ड उतरे और पीछे की दो गाड़ियों के दरवाज़े खोले।
उन दोनों गाड़ियों से ऋषिधर, अजय, सुरेखा, रोहित और रिया बाहर आए। लेकिन शोभा अब भी गाड़ी में बैठी हुई थीं, खोई हुई।
उन्हें यूँ खोया देख सब एक-दूसरे की तरफ देखने लगे।
ऋषिधर बहुत गौर से शोभा का चेहरा देख रहे थे, मानो कुछ पढ़ना चाह रहे हों। शोभा के चेहरे पर जो बेचैनी थी, उसे देख ऋषिधर समझ गए कि ज़रूर शोभा की आलोक से बात हुई है — और अब वे जानना चाहते थे कि आलोक ने ऐसा क्या कहा जो शोभा इतनी परेशान हो गईं।
क्या तारा शेरगिल मेंशन तक सुरक्षित पहुँच पाएगी?
आलोक और शोभा के बीच क्या हुआ?
आखिर तारा की मजबूरी क्या है?
जानने के लिए जुड़े रहिए मेरी कहानी से।
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