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मुंबई.......
ऋषिधर के पास खड़े उनके छोटे बेटे अजय रंधावा (शिवांश के चाचा) ने उनका हाथ थामते हुए कहा,
“पापा, आप शांत हो जाइए। आप जानते हैं कि शिवांश जो भी करता है, सोच-समझकर करता है। अगर उसने शादी के लिए हाँ की है, तो ज़रूर कुछ सोचा होगा। भले ही भाईसाहब शिवांश के पिता हैं, पर आप जानते हैं — उसे कोई मजबूर नहीं कर सकता।”
सुरेखा, अजय की पत्नी, बीच में बोल उठी —
“पर अगर शिवांश मजबूर नहीं है तो शादी क्यों कर रहा है? कौन है ये लड़की? भैया उसे घर क्यों ला रहे हैं? मैं सच कहती हूं पापा जी, मुझे ये लड़की बिल्कुल पसंद नहीं। ज़रूर कोई मक़सद है इस शादी के पीछे।”
अजय ने तुरंत सुरेखा को शांत रहने का इशारा किया।
वहीं, पास में खड़े दो लोग ये बातें चुपचाप सुन रहे थे और सेहरे में छिपे शिवांश रंधावा को देख रहे थे। भले ही चेहरा नज़र न आ रहा हो, लेकिन दोनों को अंदाज़ा था — अंदर कितनी आग सुलग रही है।
26 साल का एक नौजवान बोला,
“कोई नहीं जानता कि भाई इस वक़्त कितना ग़ुस्से में है। मैं तो हैरान हूं कि वो इतना शांत कैसे है! नहीं तो अब तक यहां तूफ़ान आ चुका होता।”
ये था रोहित रंधावा — अजय और सुरेखा का बेटा, शिवांश का छोटा भाई। गोरा रंग, भूरे आंखें, मासूम चेहरा और चॉकलेटी मुस्कान… उसका मिज़ाज भी वैसा ही — हर दिल अज़ीज़।
रोहित की बात पर, रिया रंधावा, शिवांश की छोटी बहन, बोली —
“हो सकता है रोहित भैया, ये तूफ़ान से पहले की ख़ामोशी हो। अंदर से डर लग रहा है। कौन है ये लड़की? कहां से आई? क्या उसे जीने की चाह नहीं? क्या उसे नहीं पता कि भैया माफ़िया किंग हैं? अगर चाहें तो दो मिनट में जान ले सकते हैं… फिर भी उससे शादी कर रही है?”
रिया — घर की जान, 23 साल की चुलबुली लड़की, बड़ी-बड़ी आंखें, कंधों तक बाल, बिल्कुल गुड़िया सी।
इतने में पंडित जी की आवाज़ आई —
“कन्यादान के लिए लड़की के माता-पिता को बुलाइए।”
सभी की नज़र अब दुल्हन की ओर गई। शोभा ने आलोक की ओर देखा और आलोक ने बिना किसी भावना के पंडित से कहा,
“पंडित जी, कन्यादान की कोई रस्म नहीं होगी। इस लड़की का कोई नहीं है। विवाह बिना उस रस्म के ही होगा। शुरू करिए।”
पंडित जी ने आलोक की ओर देखा, फिर विवाह की रस्में आगे बढ़ाने लगे।
दुल्हन — तारा — ने घूंघट के अंदर अपनी आंखें कसकर बंद कर लीं, और बहती हुई आंसू की बूंदें उसकी मुट्ठियों में कैद हो गईं।
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(आप सब सोच रहे होंगे — मैं कौन हूं? क्यों इस माफ़िया से शादी कर रही हूं? मेरा कोई क्यों नहीं है?)
मेरा नाम तारा है। आज मेरी उम्र 18 साल पूरी हुई है।
आप सोच रहे होंगे कि 18 की उम्र में मैं शादी क्यों कर रही हूं?
उसका जवाब है — मेरा परिवार।
हाँ, मेरा पूरा परिवार है — माँ, पिता, दो बड़े भाई — लेकिन किसी ने मुझे कभी अपनाया नहीं। मेरे लिए सिर्फ मेरी माँ थी। बाक़ी सब ने मुझे अपशगुन माना, बोझ माना।
आज मिस्टर आलोक ने एक डील साइन की — मेरी कीमत पर।
मेरे घरवालों ने मुझे खुशी-खुशी दे दिया, और आलोक ने मुझे अपने बेटे शिवांश रंधावा से शादी करने को कहा।
नाम सुना था, चेहरा कभी नहीं देखा।
सब जानते हैं — वो माफ़िया है, दुश्मनों को मौत ऐसे देता है कि रूह तक कांप जाती है।
और आज… मेरी रूह कांप रही है।
मेरे अपने ही मुझे उस दरिंदे को सौंप चुके हैं।
(अब शायद आप पूछेंगे कि मेरा परिवार कौन है? लेकिन वो कभी बाद में…
इस वक़्त पंडित जी फेरों, सिंदूर और मंगलसूत्र की तैयारी कर रहे हैं। तो चलिए — मेरी शादी ‘देखिए’।)
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पंडित जी: “अब वर-वधू सात फेरे के लिए खड़े हों।”
शिवांश तो उठ गया, लेकिन तारा अपने खयालों में डूबी बैठी रही।
पंडित जी की आवाज़ भी जैसे उस तक नहीं पहुंची।
शिवांश की नज़र घूंघट में छुपी दुल्हन पर पड़ी…
और अगले ही पल उसने तारा को अपनी बांहों में उठा लिया और फेरे लेने लगा।
तारा की चेतना लौटी —
उसने घबराकर शिवांश की शेरवानी को कसकर पकड़ लिया।
फेरे पूरे होते ही, शिवांश ने तारा को ज़ोर से नहीं, लेकिन झटके से ज़मीन पर उतारा।
तारा ने कमर पकड़कर आंखें बंद कर लीं।
पंडित जी: “अब वधू के गले में मंगलसूत्र पहनाइए।”
शिवांश ने रुखाई से थाली से मंगलसूत्र उठाया और तारा के गले में डाल दिया।
नाखून उसकी गर्दन में चुभे, दर्द से उसकी आंखें भीग गईं… लेकिन वो चुप रही।
पंडित जी: “अब सिंदूर…”
शिवांश ने एक चुटकी नहीं, पूरा मुट्ठी सिंदूर उठाया और तारा की मांग में भर दिया —
इतना कि उसका सारा चेहरा लाल हो गया।
सभी को शिवांश का ग़ुस्सा साफ़ दिख रहा था।
पंडित जी:
“अब विवाह संपन्न हुआ। आज से आप दोनों पति-पत्नी हैं।”
अगले ही पल शिवांश ने हार और दुपट्टा उतारकर आग में फेंक दिया।
और सीधे आलोक के पास जा पहुंचा।
सभी चौंक गए… किसी ने ध्यान नहीं दिया कि दुपट्टे में आग लग गई थी और चुनरी तक पहुंच रही थी।
पंडित जी चिल्लाए:
“राम-राम!”
और कुंभ का पानी आग पर डाल दिया।
सभी ने राहत की सांस ली कि तारा बच गई।
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To Be Continued...
आख़िर क्या वजह है इस शादी की?
सब आलोक से नफ़रत क्यों करते हैं?
तारा को
अभागिन क्यों माना गया?
जानने के लिए पढ़ते रहिए – "अर्धनारीश्वर: तारा और शिवांश की अनकही दास्तान"

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